शनिवार, 18 सितंबर 2021

असल सवाल सरकारी स्कूल का मेरी दुर्दशा का जिम्मेदार कौन? 

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असल सवाल सरकारी स्कूल का मेरी दुर्दशा का जिम्मेदार कौन? 
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असल सवाल शिक्षा के कर्णधारों से असल जिंदगी का।
एक सरकारी स्कूल का 
गरीबों के बच्चों का,
एक सरकारी स्कूल के बच्चों की शिक्षा-दीक्षा व शिक्षकों का। 
उसकी व्यवस्थाओं का उसके मान सम्मान का।
सिर्फ बच्चों की ही नहीं 
बड़ों की दुनिया भी बदली है, 
मौसम नहीं मन से चीजें भी बदलती है। 
शिक्षा के बगीचे, 
अभी भी अपने मालियों को पहचानते है। 
क्या माली फूलों को पहचानना भूल गया है?
ये कहना है एक सरकारी स्कूल का,
गरीब के बच्चों का-
“मेरे सामने
रोज खड़ी होती है 
प्रईवेट स्कूलों की चार बसें” 
सुबह-शाम बसों में चढ़ते उतरते बच्चों का कोलाहल।
मुझे देखकर मुंह चिढ़ाते है ये बच्चे
कई प्रश्न करते है शासकीय स्कूलों से, 
उसकी व्यवस्थाओं से, 
उसके कर्मचारियों से, शासन की शिक्षा नीति से। 
आज 
एक सरकारी स्कूल पूछती है, अपने जिम्मेदारों से 
की उसकी दुर्दशा का जिम्मेदार कौन? 
मैं, इसी सरकारी स्कूल का मास्टर
या हमारी शिक्षा व्यवस्था
मेरी भी वही पीढ़ा है जो स्कूल की है।
मेरी स्कूल के मैदान में सन्नाटा, 
कमरों में सूनापन। 
कुल दो-चार बच्चे 
मेरी स्कूल के डरे दुबके से बच्चे, 
इन बसो में चढ़ते उतरते बच्चों को देख रहे है। 
सोच रहे है 
अपनी विवशता पर, 
अपनी गरीबी पर, 
अपने छोटे पन पर 
या किसी के निकम्मे पन पर। 
टाई 
जुते-मोजे 
और बस देखकर, 
समर्थ और असमर्थ 
लोगों के बीच उत्पन्न होती खाई देखकर। 
यही तो...
मेरा भी प्रश्न है...
मैं भी तो शिक्षक हूँ...सरकारी स्कूल का।
हर तरह से ट्रेंड हूँ मैं 
वर्ष में कई प्रशिक्षण लेता हूँ मैं
मेरे स्कूल में हर तरह की सुविधाएं है।
भवन है,
शौचालय,
पानी की व्यवस्था
खेल का मैदान है, खेल सामग्री है।
पढ़ने के लिए पुस्तकालय है, स्मार्ट क्लास है। विज्ञान कक्ष है, कई माडल, कटाउट्स है।
निशुल्क पुस्तके, स्कालर्स, गणवेश, साईकल, पीने को दुध, दोपहर का मघ्यान्ह भोजन।
सब कुछ तो दिया जाता है मेरी स्कूल में
निशुल्क शिक्षा व्यवस्था के तहत।
पर्याप्त व्यवस्थाएं है, पर्याप्त शिक्षक है, सभी समय से आते है सब कुछ होने के बाद भी ऐसे कौन से कारक है जिसके कारण गाँव के सभी (1ली से 8वी तक के) बच्चे प्राईवेट स्कूल की और जा रहे है? लोगों का विश्वास धीरे- धीरे सरकारी स्कूल और शिक्षकों पर से उठता जा रहा है। 
एक सरकारी स्कूल पूछती है असल सवाल शिक्षा के कर्णधारों से असल जिंदगी का कि मेरी दुर्दशा का जिम्मेदार कौन? 
बालक, पालक, शिक्षक, समाज, शिक्षा व्यवस्था, शिक्षा नीति या शिक्षा का व्यवसायी करण अथवा लोगों की प्रतिस्पर्धात्मक दौड़ जिसमें हर कोई भाग रहा है। लेकिन आज इन सारी अव्यवस्था, असफलता और गुणवत्ता की कमी का ठीकरा सिर्फ सरकारी स्कूल के शिक्षक के सिर फोड़ा जा रहा है ये कहाँ तक उचित है?
                   

   कैलाश मंडलोई "कदंब"

2 टिप्‍पणियां:

  1. सराहनीय सृजन। प्रश्नो का अम्बार लिए।
    आख़िर जिम्मेदार कौन?
    माता-पिता बच्चों को समय नहीं दे पाते वो दौड़ते हैं दो वक़्त के खाने हेतु।
    अध्यापक अन्य गतिविधियों का बोझ झेलते हैं बहुत ही क्लिष्ठ हैं हमारी शिक्षा प्रणाली, बच्चे क्या क्या रटे, जीवन का सर्वांगीण हो तो कैसे?
    गज़ब लिखा 👌

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  2. बहुत ही सटीक प्रश्न... सरकारी स्कूलों की इस हालत का जिम्मेदार कौन ?
    लाजवाब सृजन ।

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