फिर से हो हरियाली...
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बिखरे उपवन ज्यों हरियाली
छा जाए जीवन में खुशियाली।
हरियाली से यों महके जीवन
हरियाली से यों चहके जीवन।
हरियाली की है बात अनोखी
हरियाली की पवन है चोखी।
महत्त हमनें ना क्यों पहचानी
इसको नष्ट किया की नादानी।
हमनें हरियाली से नाता तोड़ा
आपदा विपदा से नाता जोड़ा।
सूखे की सब हम जब मार सहें
गर्मी का संताप सहें किसे कहें।
बिन हरियाली मेह ना बरसे
पशु-पक्षी जन पानी को तरसे।
कटे जंगल मिटी हरियाली
दुखी जीवन बिन हरियाली।
आओ मिल अब वृक्ष लगाएँ
सूखी धरा पर हरियाली लाएँ।
कैलाश मण्डलोई
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